हालात भले ही कितने बेबस क्यों न कर दें। लेकिन हीरे की चमक एक रगड़ में ही दिखाई देने लगती है। अक्सर कई लोगों को आपने परिस्थियों के आगे घुटने टेकते हुए देखा होगा. कईयों को मजबूरी से समझौता करते हुए भी देखा होगा, लेकिन आभावों के बीच काबिलियत के दम पर मुकाम पाने वाले लोगों को आपने कम ही देखा होगा, उन लोगों को कम ही देखा हो जिनके हौसले हालात पर इतने बुलंद होते हैं की परिस्थियों ने भी उनके सामने घुटने टेक देती हैं.
ये कहानी है, मध्यप्रदेश पुलिस विभाग में पदस्थ एक महिला आरक्षक रोशनी धौलपुरे की संघर्ष की, जिन्होंने संघर्ष के सारे मिथक तोड़ते हुए अपनी काबिलियत के दम पर सफलता का वो मुकाम हासिल किया है. जहां पहुंचना लोगों के लिए किसी मिसाल से कम नहीं होता. हालांकि इस मुकाम पर पहुंचने के बाद भी रोशनी की जिद अभी पूरी नहीं हुई है. क्योंकि वो पुलिस विभाग में एक बड़ी अफसर बनना चाहती हैं. जिसके लिए वो लगातार प्रयासरत हैं.
रोशनी ने जिन हालातों से संघर्ष कर अपनी काबिलियत को पहचान बनाया है, शायद इसी के चलते आज हकीकत में वो लोगों के लिए किसी मिसाल से कम नहीं हैं. आपको बता दें कि, रोशनी के पिता मनोज धौलपुरे इंदौर में स्वास्थ्य विभाग में सफाईकर्मी हैं, परिवार में उनके अलावा दो बड़ी बहन और एक भाई है. बचपन के समय में पिता को न तो इतना वेतन मिलता था और न ही आर्थिक स्थिति परिवार की इतनी मजबूत थी कि, रोशनी को अच्छी शिक्षा मिल सके.
काबिलियत और चाहत के बावजूद मजबूरी में छोड़ दी थी पढ़ाई
यही वजह रही की रोशनी को घर वालों ने आठवीं तक पढ़ाई कराने के बाद पढ़ाई से त्याग दिला दिया और आर्थिक तंगी के दबाव में पढ़ाई छुड़वाने के बाद रोशनी की बहन मां और रोशनी सबको पांच साल के लिए रोशनी के नाना-नानी के घर उज्जैन भेज दिया गया.

कहते हैं कि हीरा किसी की पहचान का मोहताज नहीं होता, ऐसा ही कुछ रोशनी के साथ भी हुआ. नाना-नानी के घर दोनों बड़ी बहनों को कोचिंग पढ़ाने वाली दविंदर कौर ने जब रोशनी से पढ़ाई के बारे में पूछा तो रोशनी ने अपने हालात छुपाते हुए कह दिया कि पढ़ाई में मेरा मन नहीं लगता. इसलिए मैंने पढ़ाई छोड़ दी. लेकिन रोशनी का यह झूठ छुप नहीं सका और दोनों बड़ी बहनों ने पूरी हकीकत दरविंदर कौर को बयां कर दी. परिवार की स्थिति जानने के बाद दविंदर कौर ने रोशनी का दाखिला एक निजी स्कूल में करवा दिया. साथ ही पांच साल तक स्कूल की फीस और किताबों का खर्च भी दविंदर कौर उठाती रही, जिसके बाद रोशनी का मन पढ़ाई में कम और खेल में ज्यादा लगने लगा. उन्होंने स्कूल में बेसबॉल खेलना शुरू किया और अपने टीम की कप्तान बन गई. इस खेल में उन्होंने स्वर्ण, सिल्वर सहित कुल 22 राष्ट्रीय पदक जीत कर अपना ही नहीं बल्कि मध्यप्रदेश का गौरव भी बढ़ाया.
काबिलियत के दम पर बेसबॉल की कप्तान बनी रोशनी
फिर वक्त ने करवट बदली और साल 2005 में पहली राज्य स्तरीय बेसबॉल प्रतियोगिता में रोशनी का चयन हुआ और रोशनी को बेसबॉल टीम का कप्तान चुन लिया गया. रोशनी ने बताया कि कॉलेज में आने के बाद सन 2011 पुलिस भर्ती में शामिल हुई और पहले ही बार में पुलिस आरक्षक के रूप में उनका चयन हो गया.
रोशनी को पहली पोस्टिंग बड़वानी में मिली. जहां उन्होंने तीन साल तक काम किया जिसके बाद उन्होंने इंदौर पुलिस अकादमी से पुलिस ट्रेनर का कोर्स किया. जिसके बाद रोशनी को पुलिस अधिकारियों को ट्रेनिंग देने काम काम मिल गया, बचपन से बेबसी की जिंदगी गुजारने वाली रोशनी आज कितने ही पुलिस अधिकारियों को प्रशिक्षित कर रही हैं. रोशनी कहती हैं कि, वो अपना आर्दश पूर्व आईपीएस अधिकारी रही किरण बेदी को मानती हैं वहीं उनकी प्रेरणा हैं जिनको देखकर आज वो इस मुकाम तक पहुंच पाई हैं.
इस मुकाम पर पहुंचने के बाद भी रोशनी समाज में उन लोगों के लिए कुछ करना चाहती हैं जिसके चलते उन्होंने अपनी दोनों बहनों की मदद से गैर सरकारी संगठन एनजीओ शुरू किया है. जिसमें संघर्षरत और बेसहारा लोगों की मदद की जाती है. जाहिर है परिस्थितियां भले ही कैसी हो जाए लेकिन जो इन सबसे लड़कर आगे निकलता है वही लोगों के लिए मिसाल बनता है.