एक समय था, जब भारत गुलामी की जंजीरों में लिपटा पड़ा था। उस समय कहीं भी अगर किसी भी तरफ से आज़ादी की मांग उठती थी तो अंग्रेज भारत के सपूतों को फांसी पर लटका दिया करते थे। ऐसे न जानें कितने वीर सपूत हैं, जो हंसते हंसते फांसी के फंदों पर झूल गए। लेकिन फिर अंग्रेजों का दौर खत्म हुआ। भारत का संविधान बना, संविधान में फांसी की सजा को रखा गया। तब से लेकर अब तक कई लोगों को फांसी भी दी गई, मगर धीरे-धीरे हमारे देश में फांसी मानों बिल्कुल खत्म सी कर दी गई।
हालांकि आखिरी फांसी भारत में अजमल कसाब को दी गई थी। लेकिन एक बार फिर से भारत का संविधान या यूं कहें कि, भारतीय तंत्र फांसी की प्रक्रिया को अंजाम देने वाला है। वो भी उन दरिंदों को जिन्होंने साल 2013 में 16 दिंसबर की रात हैवानियत की सारी हदें पार कर दी थी। जिसके बाद भारत में एक ऐसी लहर बन गई थी। जिसमें हर इंसान मोमबत्ती, बैनर से लेकर चारों तरफ गुस्से से भर गया था। हर तरफ मांग थी कि, रेप और छेड़छाड़ जैसी घिनौनी चीजों पर सख्त से सख्त कानून बनाया जाए।
इसी को लेकर अब देशभर में खबरें हैं कि, 6 साल पहले जिस दिन देश की बेटी निर्भया के साथ 6 दरिंदो ने मिलकर हैवानियत को अंजाम दिया था, ठीक उसी दिन उसके बचे हुए 4 आरोपियों को फांसी की सजा दी जाने वाली है। जिसके लिए बिहार में मौजूद बक्सर जेल को निर्देश दिया गया है कि, वो 15 तारीख तक फांसी के 10 फंदे बना कर जमा करें। हालांकि, अभी तक ये साफ नहीं है कि, इन फंदों पर किसे झुलाया जाने वाला है। दरअसल, कहीं पर भी इस बात को लेकर कोई स्पष्ट ऐलान नहीं किया गया है। तो वहीं दूसरी तरफ निर्देश मिलते ही बक्सर जेल में फंदे बनाने की प्रक्रिया की शुरूवात हो चुकी है। लेकिन क्या आपको ये मालूम है कि, आखिर फांसी के फंदों को तैयार करने के लिए बक्सर की ही जेल को निर्देश क्यों दिए गए हैं।

Buxar Jail में क्यों बनते हैं फंदें ?
आपको बता दें कि, भारत में बक्सर की जेल ही एक ऐसी जगह है, जहां फांसी के फंदे बनाए जाते हैं। अक्सर फांसी के फंदे बनाने का काम, किसी भी फांसी के निर्देश के लगभग 1 महीने पहले ही शुरू कर दिया जाता है। जिसमें 15 दिन बनाने में और 15 दिन उसको फिनिशिंग देने में लग जाते हैं। क्योंकि फांसी की जानकारी जेल के पास महीने दो महीने पहले ही पहुंच जाती है।
वहीं अगर देखें तो, पिछले कुछ दशकों में अगर भारत में कहीं भी फांसी हुई है तो, फांसी का फंदा बनाने के लिए रस्सी भी बक्सर की ही जेल से भेजी गई है। चाहें वो पुणे में कसाब को दी गई फांसी की बात हो, या फिर साल 2004 में कोलकाता में धनजंय मुखर्जी को दी गई फांसी की बात हो। यही नहीं, अफजल गुरु को भी फांसी यहीं के जेल की रस्सी से दी गई थी।
हालांकि फांसी के फंदे बनाने की प्रक्रिया की शुरुआत बक्सर की जेल में साल 1930 में हुई थी। तब से लेकर अब तक जितनी भी बार यहां के फंदों का इस्तेमाल किया गया है। उनमें से कोई भी फांसी फेल नहीं हुई है। यहां की रस्सियों को मनीला रस्सी कहते हैं और ऐसा माना जाता है कि, इनसे मजबूत रस्सी नहीं होती है। यही वजह है कि, पुलों को बनाने और भारी सामान को ढ़ोने और किसी भी भारी वजनी सामान को लटकाने के लिए इन्हीं रस्सियों का इस्तेमाल किया जाता है।
ये रस्सियां फिलीपींस में पाई जाने वाले पौधे मनीला से बनाई जाती हैं, जिसके चलते इसका नाम भी मनीला रस्सी पड़ गया। ये रस्सियां अलग तरह की गड़ारीदार रस्सियां होती हैं, जिन पर पानी का कोई असर नहीं होता है। बल्कि ये पानी को पूरी तरह सोख लेती हैं। जिसके चलते इसमें लगने वाली गांठ की पकड़ काफी दमदार होती है।
जे-34 कॉटन से पहले बनते थे, फांसी के फंदे
ऐसा नहीं है कि, फांसी के फंदों को बक्सर में ही बनाया जाता रहा है, बल्कि पहले फांसी के फंदे बनाने के लिए पंजाब के भटिंडा से जे-34 कॉटन आता था। जिससे फांसी के फंदे बनाए जाते थे, वहीं अगर आज के समय की बात करें तो, बक्सर के जेल में मनीला से रस्सी बनाने वाले एक्सपर्ट मौजूद हैं। जबकि जेल में मौजूद कैदियों को भी फांसी के फंदे बनाने का हुनर सिखाया जाता है। यहां के खास बरांदा में इन फंदों को बनाने का काम किया जाता है।
Buxar Jail में फंदे बनाने में इन चीजों का होता है, इस्तेमाल

खासतौर पर फांसी के फंदे बनाने के लिए मोम के साथ-साथ सूत का धाग, फेविकोल, पीतल का बुश व पैराशूट रोप इस्तेमाल की जाती है। वहीं जेल के अंदर पावरलूम मशीन भी लगी हुई है, ये वो मशीन है जो धागों की गिनती करती है। क्योंकि एक फंदे में लगभग 72 सौ धागों का इस्तेमाल किया जाता है।
फांसी के फंदे की लंबाई, कितनी होती है..?
आमतौर पर एक फांसी का फंदा छह मीटर लंबा होता है, हालांकि कभी-कभी ये लंबाई जिसे फांसी दी जाने वाली होती है। उसकी लंबाई देखकर तय की जाती है। वहीं अगर इस रस्सी कीमत की बात करें तो एक फंदा बनाने में लगभग एक हजार रुपए से लेकर दो हजार रुपए के बीच होती है। वहीं इस फंदे पर वैट भी लगाया जाता है।
कितना वजन उठा सकता है, बक्सर का फंदा
इस फांसी के फंदे पर किसी भी व्यक्ति को फांसी दी जा सकती है। जबकि इस फंदे पर औसतन 80 किलो वजन के शख्स को आसानी से लटकाया जा सकता है। वहीं इन फंदों को जेल से दूसरी जगह औसतन एक हफ्ते पहले ही भेज दिया जाता है। ताकि जल्लाद तीन से चार दिन इस फंदे पर ट्रायल कर सके, ताकि फांसी के समय किसी भी तरह की परेशानी न हो। वहीं इस फंदे से गोल बनाने और गर्दन पर आसानी से सरककर कस जाती है और ये काम जल्लाद का होता है।