दिवाली का त्योहार आने को है। देश समेत पूरी दुनिया में रहने वाले भारतीय इस त्योहार का बेसब्री से इंतजार करते हैं। लेकिन दिवाली सिर्फ दीप जलाने से शुरू या खत्म नहीं होती। असल में दिवाली एक दिन का त्योहार नहीं बल्कि 5 दिनों का त्योहार है। इन पांच दिनों में दो दिवाली से पहले (धनतेरस और नरकाचर्तुदर्शी) और दो दिवाली के बाद (गोवर्धन पूजा और भैयादूज) आते हैं। दिवाली के बाद मनाए जाने वाले गोवर्धन पूजा से कई पौराणिक कहानियां जुड़ी हुई हैं। गोवर्धन पूजा को अन्नकूट के नाम से भी देश के कई हिस्सों में जाना जाता है।
Govardhan Puja- जब कृष्ण ने गोवर्धन पहाड़ को उठाकर की थी गोकुल वासियों की रक्षा

भागवत पुराण के अनुसार गोवर्धन पूजा भगवान कृष्ण को समर्पित है। क्योंकि उन्होंने इसी दिन गोवर्धन पहाड़ को अपनी छोटी ऊंगली कनिष्का पर उठाकर इंद्र के प्रकोप से गोकुल के सभी लोगों की रक्षा की थी। कहानी के अनुसार उस समय गोवर्धन के आस—पास के ग्वाले कार्तिक महीने में इंद्र की पूजा करते थे। लेकिन कृष्ण ने अपने गांव के लोगों से इंद्र की बजाए गोवर्धन पूजा करने को कहा क्योंकि वे मानते थे कि गोवर्धन ही वह पहाड़ है जो गांव के लोगों को बिना किसी स्वार्थ के जरूरी संसाधन देता है।
कृष्ण के ज्ञान से गांव के लोग प्रभावित हुए और उनका मान गांव में सबसे ज्यादा बढ़ गया। वहीं कृष्ण द्वारा इंद्र की पूजा को बंद कराए जाने से इंद्र गुस्से में आ गए और उनका यह गुस्सा लोगों के ऊपर भारी बारिश के रूप में गिरा। तब भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पहाड़ को अपनी छोटी उंगली पर उठा लिया और गांव के लोगों को उनके मवेशियों और समानों के साथ उसके नीचे आश्रय दिया। करीब 7 से 8 दिनों तक बारिश होती रही, लेकिन जब इंद्र ने देखा की गांव के लोगों का बाल भी बांका नहीं हुआ है तो उसने अपनी हार मान ली। इस घटना के बाद से ही गोवर्धन की पूजा पूरे भारत में की जाने लगी। आज के दौर में ब्रज जाने वाले लोगों के लिए गोवर्धन सबसे ज्यादा आकर्षण का केंद्र होता है।
Govardhan Puja- कुछ इस तरह पूरी होती है गोवर्धन पूजा
अन्नकूट और गोवर्धन पूजा को देश भर में अलग-अलग तरह से मनाया जाता है। लेकिन गाय के गोबर से गोवर्धन बनाने और उसे पूजने की विधि लगभग समान रूप में हर जगह अपनाई जाती है। इस दिन गोबर से गोवर्धन की की आकृति बनाई जाती है और समीप विराजमान कृष्ण के सम्मुख गाय तथा ग्वाल-बालों की रोली, चावल, फूल, जल, मौली, दही तथा तेल का दीपक जलाकर पूजा और परिक्रमा की जाती है। वहीं इस दिन गाय-बैल आदि पशुओं को स्नान कराके उन्हें धूप-चंदन और फूल माला पहनाकर उनकी पूजा की जाती है। वहीं इस दिन को गौमाता को मिठाई खिलाकर उनकी आरती उतारी जाती तथा प्रदक्षिणा भी की जाती है।
उत्तरी भारत में यह पूजा ज्यादा लोकप्रिय है। कई जगहों पर गोवर्धन पूजा मनाने का तरीका अलग है। जैसे कि बिहार में इस पूजा को मनाने का तरीका और दिन भी अलग है। यहां यह पूजा भैयादूज के भोर में मनाया जाता है। इस दिन बलि पूजा, मार्गपाली आदि उत्सव भी मनाए जाते हैं।