इस्लाम, एक अरबी शब्द है जिसका मतलब होता है अमन यानि की शांति। यानि की इस्लाम वो धर्म है जो शांति कायम करने में विश्वास रखता है। लेकिन दुनिया सहित भारत में भी इस्लाम को लेकर एक अलग सोच है। ऐसा ज्यादात्तर इसलिए है क्योंकि भारतीय इतिहास में इस्लामी आक्रांताओं का एक पूरा कालखंड है। लेकिन क्या भारत में इस्लाम सिर्फ तलवार की बदौलत ही पहुंचा? क्या भारत में लोगों ने इस नए धर्म को तलवार के डर से ही अपनाया? इस सवाल का जवाब है नहीं, ऐसा बिल्कुल नहीं है। कई लोग इसपर बहुत वाद—विवाद करेंगे, लेकिन हम आपको इन सवालों का जवाब देने के लिए आज उस जगह के बारे में बताने जा रहे हैं जो इस बात का सबूत है कि, जब भारत में इस्लाम पहली बार आया तो उसके पास तलवार नहीं थी।
Cheraman Juma Masjid- भारत की पहली मस्जिद
केरल…, ‘गॉड ओन लैंड’ यानि वो जगह जो भगवान की अपनी धरती है। यहां के कोच्चि के उत्तरी शहर में एक छोटा सा शहर है, मेथाला। यहां एक दो मंजिला मस्जिद है जिसकी छत पर टाइल्स लगे हुए हैं। जो स्थानीय वास्तु कला का ही रूप है। इतिहास के हिसाब से इस मस्जिद को जितना पुराना माना जाता है असल में यह मस्जिद उतनी पुरानी दिखती नहीं है, ऐसा शायद इसलिए है क्योंकि इस मस्जिद की देखभाल हमेशा से समय-समय पर होती आई है। ऐसा कहा जाता है कि यह मस्जिद भारत ही नहीं बल्कि पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में सबसे पुरानी और पहली मस्जिद है।

ऐसा माना जाता है कि इस मस्जिद का निर्माण पैगंबर मुहम्मद साहब के जीवनकाल में ही सन् 628 ई. में किया गया था। इस मस्जिद का नाम है ‘चेरामन जुमा मस्जिद’। इसकी नुकीली छतों वाली दीवारों को देखकर ऐसा जरूर लगता है कि यह 7वीं सदी में बनवाई गई होगी। कुवतुल इस्लाम मस्जिद, जो दिल्ली सल्तनत काल में बनी थी उससे भी 500 साल पहले इस मस्जिद का इतिहास माना जाता है। यानि भारत के केरल में इस्लाम बहुत साल पहले ही आ गया था। हालांकि साहित्य रिकॉर्ड इस मस्जिद में वास्तु कला 13वीं और 14वीं शताब्दी में परवान चढ़ी।
Cheraman Juma Masjid का इतिहास
भारत शुरू से ही पूरी दुनिया के लिए व्यापार का केन्द्र रहा है। ऐसे में यहां अरब के व्यापारी कई सदियों से व्यापार करते रहे हैं। 6वीं और 7वीं शताब्दियों में यह व्यापार समुद्र के जरिए भी हुआ करता था। यह व्यापार दक्षिण के मालाबार कोस्ट से हुआ करता था और इसी मार्ग के जरिए कई पश्चिमी धर्म और आस्थाएं भारत पहुंची। 9वीं शताब्ती में भारत आए एक पारसी मुस्लिम व्यापारी सुलेमान—अल—ताजीर ने इस जगह के बारे में लिखा है कि, केरल के कुछ इलाकों में मुसलमानों की थोड़ी बहुत आबादी है। चेरामल मस्जिद के बारे में कहा जाता है कि इसे राजा चेरामन पेरूमल ने बनवाया था। ऐसा माना जाता है कि उन्होंने उस समय चांद के दो टुकड़ों में बटने की घटना को देखा था, जिसे इस्लाम की कहानियों में बताया जाता है।
इस इलाके के स्थानीय मुसलमान मानते हैं कि राजा चेरामल ने इस्लाम अपनाया था और वो हज के लिए मक्का भी गए थे। मक्का—मदीना से लौटते समय उनकी मौत हो गई थी और उन्हें ओमान के सलाला शहर में दफनाया गया था, जहां आज भी उनकी दरगाह है। हालांकि कई लोग यह भी मानते हैं कि इस मस्जिद को अरब के ट्रेवलर मलिक दीनार में बनवाया था। उसने इसके साथ ही 7 और मस्जिदें केरल के समुद्री किनारों पर बनवाई थी।
1000 ईसवी में इस मस्जिद की बनावट में बहुत से बदलाव किए गए। यह ईमारत 1504 तक बनी रही। सन् 1504 में Lopo Soares de Albergaria अटैक में पुर्तगालियों ने इस मस्जिद को पूरी तरह से धवस्त कर दिया था। इसके बाद पुरानी ईमारत को फिर से पुर्नजीवित किया गया लेकिन 1984 में इसे एक नए रूप में ढ़ाला गया। लेकिन आज भी मंदिर के अंदर पुराने ढ़ांचे का एक रिप्लिका रखा हुआ है।

धार्मिक सद्भाव का प्रतीक देती मस्जिद
ऐसा माना जाता है कि मोपिला कम्यूनिटी के लोग पहले मुस्लिम थे, आज भी यहां की आबादी में 26.56% की हिस्सेदार है। ऐसा माना जाता है कि ये लोग या तो पहली जाति थे जिन्होंने खुद को इस्लाम में कन्वर्ट किया या ये लोग अरबों के संग सम्पर्क में आनेवाले पहले भारतीय लोग थे। ये लोग ही इस मस्जिद में कई सालों से इबादत करते हुए आ रहे हैं। लेकिन यह मस्जिद अपनी बनावट के कारण एक धर्म तक सीमित नहीं है।
मस्जिद के अंदर एक लैंम्प है जो कई सालों से जल रहा है। वहीं मस्जिद के बाहर की बनावट भी ज्यादातर हिन्दू पद्धति जैसी है। यहां आसपास रहनेवाले हिन्दू और अन्य लोग आज भी इस मस्जिद में सुबह में प्रार्थना करते हुए दिख जाएंगे। वहीं मस्जिद में आज भी वो लैंम्प जलाया जाता है जो हमेशा से जल रहा है। केरल में मनाया जानेवाला विद्यारंभ का त्योहार भी इस मस्जिद में होता है। यहां मंदिर के इमाम बच्चों का विद्यारंभ करवाते हैं। वहीं कई ऐसी परंपराएं भी हैं जो हिन्दू, मुस्लिम और दूसरे धर्म के लोग आपस में मिलकर करते हैं।
अपने अनोखेपन के लिए यह मस्जिद केरल में लोगों के लिए एक पसंदीदा टूरिस्ट प्लेस भी है। वहीं इसी मस्जिद से 10 किमी की दूरी पर भारत में बना सबसे पुराना और सबसे पहला चर्च भी मौजूद है। चेरामन मस्जिद की इस बात का गवाह है कि कोई भी धर्म अपने मूल रुप में शांति और सद्भाव का ही संदेश देता है। भारत में ईस्लाम मोहम्मद पैगंबर साहब के समय में ही आ गया था और उस समय इसकी स्वीकार्यता भी रही, लेकिन जब जब मोहम्मद बिन कासिम ने धर्म के नाम पर राज्यों पर अधिकार स्थापना करने के लिए अभियान छेड़ा तो धर्म का पॉलिटिकल यूज देखने को मिला और इस्लाम को भी इसी का शिकार होना पड़ा।