आज हमारे समाज में भोजपुरी कहने और सुनने वाले भले ही कितनी बड़ी संख्या में क्यों न हो लेकिन उसे अहमियत देने वाले लोग बहुत कम हैं. शायद, यही वजह है की आज भोजपुरी समाज और उसका संगीत दिनों दिन फूहरता की तरफ जा रहे हैं. यही वजह रही कि इसे सजाने और संवारने के लिए बचपन में ही एक लड़की ने कोशिश शुरू की थी…और वो कोशिश ऐसी की आज वो खुद मिसाल बन गई.
चलिए हम आपको बताते हैं उसी लड़की की जिंदगी की दास्तां, जिसने भोजपुरी को उच्च क्लास का दर्जा दिलाने के लिए सुर तो छेड़े, लेकिन जल्दी ही वो सुर शांत पड़ गए. लेकिन अपने जीते जी ऐसा काम कर गए की आज उसका वो सुर हर जगह हर कहीं भोजपुरी जगत की पहचान बन रहे हैं और वो नाम है, अनुभूति शांडिल्य उर्फ ‘तीस्ता’.
भोजपुरी जगत की एक ऐसी लड़की जिसने महज 13 साल की उम्र में संगीत की दुनिया में कदम रखा और अपना नाम में एक उपनाम जोड़ दिया या यूं कहें, दुनिया ने उसकी आवाज से खुश होकर उसे एक नाम दे दिया ‘तीस्ता’ और तीस्ता ने, राजा कुंवर सिंह को अपना आधार मान कर जिस तरह, अपने लोकगीतों में अपनी आवाज को सुंदरता दी. शायद यही बात है. जो लोग तीस्ता को देखने और सुनने के दीवाने हो गए थे.
करीब दो साल पहले जुलाई में अनुभूति शांडिल्य यानि की ‘तीस्ता’ ने अपने फेसबुक पेज पर सावन को समर्पित चंद चन्द लाइनें लिखी थी.
सावन ए सखी सरबे सुहावन, रिमझिम बरसेला मेघ हे
सबके बलम सखी घरे घरे अइलें, मोर पिया परदेस हे
उसी समय उनके कमेंट बॉक्स में एक शख्स ने पूछा इस गीत का ऑडियो वर्जन कब आएगा, तो उसका जवाब तीस्ता ने लिखा था जल्द ही. हालांकि, अब तो इस साल का सावन भी बीत गया. लेकिन ऑडियो नहीं आया, बीते 27 अगस्त को तीस्ता के भाई ने अपने फेसबुक पोस्ट पर लिखा था. “लौट आओ मेरी अपराजिता” तुम्हारा भाई तुमसे साहित्य पढ़ने आया है, तुम्हारे लिए ब्रिटैनिया केक भी लाया है.
27 अगस्त की शाम, जब उद्भव शांडिल्य यानि की तीस्ता का भाई पटना एम्स में अपनी बहन तीस्ता को देखने गया. उस दौरान डॉक्टरों ने कह दिया था कि शरीर के सारे ऑर्गन फेल हो चुके हैं. केस इस समय उनके हाथ से बाहर निकल गया है. फिर भी भाई को यकीन था कि उसकी बहन तीस्ता वापस लौट कर आएगी.

हालांकि सवाल ये है कि, अनुभूति शांडिल्य उर्फ ‘तीस्ता’ थी कौन..? जिसके लिए लोकगायिका पद्म श्री शारदा सिन्हा और भोजपुरी के लोकप्रिय गायक भरत शर्मा ‘व्यास’ उस समय क्यों अस्पताल में पड़ी तीस्ता के लिए सरीखे कलाकारों से मदद की गुहार लगा रहे थे..? क्यों पूरा भोजपुरिया समाज तीस्ता की सलामती की दुआएं मांग रहा था..?
अनुभूति शांडिल्य उर्फ ‘तीस्ता’ उम्र 17 साल, जो आज बिहार के लोगों के बीच जानी पहचानी जाती है तो अपनी लोकगातों की वजह से महज 13 साल की उम्र में सिंगिंग के क्षेत्र में कदम रखने वाली तीस्ता ने आज से करीब दो साल पहले बिहार बोर्ड से 12वीं की परीक्षा पास की थी और वो बिहार के छपरा जिले के रिविलगंज की रहने वाली थी. तीस्ता के पिता उदय नारायण सिंह संगीत के शिक्षक हैं. तीस्ता जब कभी किसी कार्यक्रम में मंच पर प्रस्तुति देने जाती थी, तो उसके पिता मंच पर साथ होते थे, महज 13 साल की उम्र में तीस्ता ने पहली बार मैथिली-भोजपुरी अकादमी की तरफ़ से आयोजित एक कार्यक्रम में अपनी गायन शैली और भावपूर्ण नृत्य की प्रस्तुति से सबका दिल जीत लिया था.
हालांकि लगभग 2 साल पहले ही 28 अगस्त को तीस्ता के पिता उदय नारायण सिंह ने फेसबुक वॉल पर लिखा था कि तीस्ता ना रहली….मतलब कि….तीस्ता दुनिया छोड़ कर जा चुकी हैं. जिसके बाद पूरा सोशल मीडिया, भोजपुरी जगत की जानी मानी हस्तियां, इसके लिए दुख प्रकट करने लगी.

चलिए बात उस समय की करते हैं, जब दिल्ली के पालम स्थित दादा देव ग्राउंड में तीस्ता ने भोजपुरी लोकगायन की पारंपरिक व्यास शैली में कुवंर सिंह की वीरगाथा गाकर सुनाई थी. भले ये जगह दिल्ली का पालम था. लेकिन यहां से निकली आवाज ने भोजपुरी दुनिया की तमाम हस्तियों को बता दिया था कि अनुभूति शांडिल्य यानि की तीस्ता कौन है.
इस कार्य़क्रम के साक्षी रहे, एक सख्स की मानें तो वो बताते हैं कि, उतनी कम उम्र में उस बच्ची की लय, ताल, भाव, मुद्रा, देखकर वहां बैठा हर व्यक्ति यही सोच रहा था कि इसकी आवाज में खनक है, वो शुद्धता है, जो भोजपुरी को वो दर्जा दिला सकती है, जो भोजपुरी पिछले कुछ समय से खोती आ रही है.
इसके आगे वो कहते हैं कि उस कार्यक्रम को देखकर ऐसा लग ही नहीं रहा था कि ये कार्यक्रम उसकी पहली प्रस्तुति है. इस कार्यक्रम के बाद लोगों ने अनुभूति शांडिल्य यानि की तीस्ता के नाम में एक और नाम जोड़ दिया… “तीजनबाई”. क्योंकि तीस्ता की खनकती आवाज और भावमय नृत्य ने उस दिन जो छाप दिल्ली के दर्शकों में छो़ड़ी थी, वो अकल्पनीय थी.
हालांकि गायन की दुनिया में 13 साल की उम्र में शुरू हुआ सफर, महज 17 साल की उम्र में ही थम गया. लेकिन गायन की दुनिया में जो आधार तीस्ता ने बनाया उसका कायल आज हर भोजपुरी समाज में रूचि रखने वाला इंसान है. तीस्ता जब भी मंच पर खड़ी हुई तो उसके साथ उसके पिता खड़े हुए. हमेशा संगीत पिता का होता था और बोल तीस्ता के होते थे. दोनों की अद्दभुत जुगलबंदी ही थी की तीस्ता ने सबसे कम उम्र में उस मुकाम को हासिल कर लिया. जिसके लिए लोग पूरी जिंदगी लगा देते हैं. तीस्ता ने अपनी आखिरी सांसें लेने से पहले एक फेसबुक लाइव किया था. जिसमें तीस्ता ने खुद बोला था. मैं जल्दी ही ठीक होकर, फिर से गाना गाऊंगीं, मगर अफसोस तीस्ता आखिरकार जिंदगी से जंग हार गई, तुम हमेशा याद रहोगी….‘तीस्ता’
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